नई दिल्ली। हरियाणा में हार से जले सपा प्रमुख अखिलेश यादव अब यूपी में कांग्रेस को किनारे लगाने के मूड में दिख रहे हैं. वहीं महाराष्ट्र की बात करें तो वहां भी महाअघाड़ी के सीट बंटवारे का मामला फंसा हुआ है, लेकिन अखिलेश ने 4 सीटों पर प्रत्याशियों का ऐलान कर अपने इरादे साफ कर दिए हैं कि वे ज्यादा देर किसी का इंतजार नहीं करेंगे.
पहले बात यूपी की करते हैं. यूपी का पहला संदेश ये है कि अखिलेश यादव कांग्रेस से हरियाणा का बदला अब उत्तर प्रदेश में लेने जा रहे हैं. उत्तर प्रदेश में विधानसभा की 9 सीटों पर उपचुनाव होना है. कानपुर की सीसामऊ सीट, प्रयागराज की फूलपुर सीट, मैनपुरी की करहल सीट, मिर्जापुर की मझवां सीट, अंबेडकरनगर की कटेहरी सीट, गाजियाबाद सदर सीट, अलीगढ़ की खैर सीट, मुरादाबाद की कुंदरकी सीट और मुजफ्फरनगर की मीरापुर सीट पर उपचुनाव है. आपको याद होगा कि हरियाणा चुनाव में दीपेंद्र हुड्डा ने कहा था कि हरियाणा में सपा का बेस नहीं है. उसका बदला लेते हुए अखिलेश यादव ने इस उपचुनाव में काग्रेस को सिर्फ दो सीटें दी है. ये सीटें हैं गाजियाबाद और खैर.
हरियाणा में काग्रेस की हार हुई तो समाजवादी पार्टी ने बिना देर किए कांग्रेस को नसीहत दे दी कि काग्रेस आत्ममंथन करे. सपा ने कांग्रेस को नसीहत तो दे दी लेकिन उपचुनाव में मन मुताबिक सीटें नहीं दी. अभी एक सीट मिल्कीपुर जो अयोध्या में आती है उस पर चुनाव आयोग ने चुनाव का ऐलान नहीं किया है क्योंकि इस सीट को लेकर मामला कोर्ट में है. समाजवादी पार्टी और बीजेपी दोनों ये दावा कर रही है कि सभी सीटों पर उनकी ही जीत होगी.
उत्तर प्रदेश में तो समाजवादी पार्टी कांग्रेस के बड़े भाई की भूमिका में आ गई है वहीं महाराष्ट्र की राजनीति में समाजवादी पार्टी डबल अटैक कर रही है. एक तरफ अखिलेश यादव महाराष्ट्र में औवैसी की गढ़ में सेंध लगाने में जुटे हैं वहीं दूसरी तरफ महाअघाड़ी में ज्यादा से ज्यादा सीटों की मांग करके कांग्रेस और शिवसेना की टेंशन बढ़ा रहे हैं. इस बदलती हुई राजनीति के केंद्र में कहीं ना कहीं हरियाणा में कांग्रेस की हार, बीजेपी की जीत और अखिलेश यादव की बढ़ती महत्वाकांक्षा है. दरअसल ये पूरा खेल कैसे हो रहा है, इसे समझिए.
महाराष्ट्र गठबंधन वहां अब तक सीटों पर तालमेल नहीं बना पा रहा और इधर अखिलेश ने चुपचाप चार सीटों पर अपने प्रत्याशियों का ऐलान भी कर दिया. संकेत साफ है कि झुकना तो कांग्रेस और महाअघाड़ी के दूसरे सहयोगियों को होगा, अखिलेश यादव नहीं झुकेंगे.
वहीं दूसरी तरफ महाअघाड़ी में सीटों के बंटवारे को लेकर लगातार घमासान चल रहा है. दरअसल मध्य प्रदेश और हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के झटके को अखिलेश यादव भूले नहीं हैं और इस इंतकाम का बदला यूपी से लेकर महाराष्ट्र तक ले रहे हैं. वैसे अखिलेश यादव AIMIM चीफ ओवैसी को भी सबक सिखाने के मूड में हैं.
मालेगांव और धुले में चुनावी रैलियों के जरिए अखिलेश यादव मुस्लिम बहुल सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी में हैं और कई सीटों पर ओवैसी की पकड़ है. इसीलिए AIMIM भी टेंशन में है.
वैसे AIMIM अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि वो कांग्रेस के साथ महाराष्ट्र में गठबंधन करना चाहते हैं और इसके लिए पत्र भी लिखा था, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी. भले AIMIM की कांग्रेस साथ बात नहीं बनी है, लेकिन अखिलेश यादव ओवैसी और महाअघाड़ी का खेल बिगाड़ने में तो जुटे ही हैं.
महाराष्ट्र की राजनीति में बीते कुछ वर्षों में बड़ा बदलाव आया है. चाचा-भतीजा एक दूसरे के खिलाफ हैं. भाई-भाई अलग हैं. दोस्त-दोस्त लड़ रहे हैं. विचारधाराओं का बंटवारा हो गया है. लेकिन अखिलेश की एंट्री से कैसे ओवैसी का खेल बिगड़ सकता है इसे समझिए.
2019 विधानसभा चुनाव में मालेगांव सेंट्रल और धुले शहर विधानसभा सीट AIMIM जीती थी. वहीं 2014 के चुनाव में औरंगाबाद सेंट्रल और भायखला सीट पर ओवैसी की पार्टी जीती थी और 2019 के लोकसभा चुनाव में औरंगाबाद सीट जीती थी.
अखिलेश यादव अपने पहले चुनाव प्रचार में इन्हीं सीटों को टारगेट कर रहे हैं. दरअसल मुस्लिम बहुल सीटों पर ओवैसी की जीत के बाद ये माना जाने लगा है कि महाराष्ट्र में मुसलमानों को कांग्रेस और एनसीपी का सियासी विकल्प AIMIM मिल गई है, लेकिन अखिलेश के ओवैसी के गढ़ में उतरने से अब ये खेल बिगड़ता दिख रहा है.