नई दिल्ली। बिना किसी लाग लपेट यह कहा जाए कि अरविंद केजरीवाल ने खुद ही अपनी और आम आदमी पार्टी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। यह सब एक दिन में नहीं हुआ.. इसके पीछे की क्रोनोलॉजी समझने की जरूरत है। कैसे जनता ने खुद को ठगा पाया।
आखिरकार वही हुआ जिसका अंदेशा देश के राजनीतिक पंडित लगा रहे थे। दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की बड़ी हार ने सभी को चौंकाया.. उससे भी ज्यादा नई दिल्ली सीट के परिणाम ने चौंकाया। सीधा और सपाट शब्दों में कहें और हार के पीछे के कारणों को खंगाला जाए तो पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल खुद ही इसकी बड़ी वजह नजर आ रहे हैं। आम आदमी की छवि गढ़कर राजनीति में कदम रखने वाले केजरीवाल का सफर शीशमहल तक पहुंचने के बाद उनकी सादगी वाली छवि को ध्वस्त कर गया। शराब नीति घोटाले जैसे आरोप, तानाशाहीपूर्ण नेतृत्व शैली और अड़ियल रवैये ने जनता का भरोसा तोड़ा। नतीजा सबके सामने है। सवाल है कि क्या आम आदमी पार्टी की राजनीति दिल्ली से खत्म हो रही है.. इसे समझना जरूरी है।
आम आदमी’ की छवि से ‘शीशमहल’ तक
दरअसल केजरीवाल ने राजनीति की शुरुआत आम आदमी की सादगी और ईमानदारी के प्रतीक के रूप में की थी। मेट्रो से सफर करना, सस्ती कार में चलना, सुरक्षा लेने से इनकार करना ये सभी बातें उन्हें जनता के बीच अलग बनाती थीं। लेकिन जल्द ही यह छवि धूमिल होने लगी। 40 करोड़ के सरकारी बंगले को लेकर उठे विवाद ने उनकी सादगी वाली छवि को बड़ा झटका दिया। जनता ने उन्हें अपने जैसा नेता समझकर चुना था लेकिन उनकी वीवीआईपी लाइफस्टाइल देखकर जनता ने खुद को ठगा पाया।
भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई से शराब घोटाले तक
याद करिए वो दिन जब कभी केजरीवाल भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन से निकले नेता थे लेकिन वह समय आ गया जब उनकी ही सरकार पर शराब नीति घोटाले के आरोप लगे। यह वही पार्टी थी जो पारदर्शिता और ईमानदारी की बात करती थी लेकिन जब खुद पर सवाल उठे, तो बचाव में ठोस जवाब देने के बजाय राजनीतिक विरोधियों पर दोष मढ़ने लगी। वे खुद ही सवालों के घेरे में आ गए।
जनता से भी बढ़ा ली दूरी..परिणाम सामने
शुरुआत में केजरीवाल जनता के बीच जाने वाले नेता माने जाते थे लेकिन समय के साथ उनकी कार्यशैली बदल गई। यह सब उनकी लोकप्रियता के लिए घातक साबित हुआ। केजरीवाल ने जिस ईमानदार और पारदर्शी राजनीति का वादा किया था, वह धीरे-धीरे सत्ता और संसाधनों के लालच में बदल गई। जनता ने उन्हें अर्श तक पहुंचाया था, लेकिन जब उन्होंने अपनी पहचान बदल ली, तो जनता ने उन्हें फर्श पर ला दिया। एक्सपर्ट्स का तर्क यह भी है कि AAP एक आंदोलन से निकली पार्टी है जिसका कोई ठोस कैडर नहीं है। अगर वह सत्ता से बाहर होती है तो उसका टिके रहना मुश्किल हो सकता है।