संकेत साहित्य समिति द्वारा पावस काव्य गोष्ठी संपन्न

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रायपुर। संकेत साहित्य समिति द्वारा वृंदावन हॉल रायपुर में दिनांक 20 जुलाई को भाषाविद्, संगीतज्ञ एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ चितरंजन कर के मुख्य आतिथ्य, वरिष्ठ व्यंग्यकार गिरिश पंकज की अध्यक्षता एवं अमरनाथ त्यागी, के.पी.सक्सेना ‘दूसरे’ एवं रामेश्वर शर्मा के विशिष्ट अतिथ्य में पावस गोष्ठी का वृहद आयोजन डॉ. रवीन्द्र सरकार के संयोजन एवं व्यंग्यकार सुनील पांडे के कुशल संचालन में संपन्न हुआ। माँ सरस्वती की पूजा – वंदना के पश्चात सभी अतिथियों का सम्मान तुलसी की माला, पुस्तक एवं गुलाब पुष्प भेंट कर किया गया।


संकेत साहित्य समिति के संस्थापक एवं प्रांतीय अध्यक्ष डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’ ने स्वागत उद्बोधन एवं संकेत की काव्य यात्रा पर प्रकाश डालने के साथ पावस ऋतु के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि कविता का जीवन प्रकृति से तथा जीवन एवं प्रकृति का कविता से गहरा संबंध होता है। भारतीय साहित्य और संगीत को सबसे अधिक प्रभावित करने वाली दो ऋतुएं बसंत और पावस हैं। वर्षा ऋतु में कवि का मन आह्लादित हो उठता है। कालिदास के ऋतु प्रेम ने उनसे ऋतु संहारम्‌ की रचना करवाई। रामचरित मानस में तुलसी ने किष्किंधाकांड में स्वयं राम के मनोभावों द्वारा वर्षा ऋतु का वर्णन किया है जो अद्भुत है। आदि काल से अबतक कवियों ने पावस के विभिन्न रूपों को खूबसूरती से चित्रित किया है।

मुख्य अतिथि की आसंदी बोलते हुए डॉ. चितरंजन ने कहा कि प्रकृति से मनुष्य का संवाद विज्ञान कहलाता है एवं मनुष्य मनुष्य का संवाद साहित्य का रूप लेता है। भाषा संस्कृति की पहचान होती है एवं साहित्य से संस्कार सुरक्षित रहता है। साहित्य मनोरंजन का साधन नहीं होता। उन्होंने अपनी बात को काव्यात्मक रूप देते हुए कहा कि पर्वत, झरने झील, सरोवर, बीच बीच में सुन्दर वन हो। जीवन का सुन्दर अध्याय लिखूं मैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रख्यात व्यंग्यकार गिरिश पंकज ने मौजूदा साहित्यिक परिवेश को रेखांकित करते हुए कहा कि साहित्य का मूल चरित्र संकेत होता है। संकेत शब्द कई अर्थों में साहित्य को परिभाषित करता है। जो साहित्य समाज को सही रास्ते पर जाने का संकेत नहीं दे पाता, केवल शब्दों के मायाजाल में उलझाकर बौद्धिक विलास में लगा रहता है उसका कोई औचित्य नहीं होता। साहित्य वही सार्थक माना जाता है जिसे पढ़़कर एवं सुनकर जनमानस को नर से नारायण की ओर उन्मुख होने की प्रेरणा मिले।
काव्य गोष्ठी में राजधानी एवं प्रदेश के विभिन्न स्थानों से आए चालीस से अधिक जिन कवियों / कवयित्रियों ने काव्य पाठ किया उनमें डॉ चितरंजन कर, गिरिश पंकज, डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’, अमरनाथ त्यागी, के.पी. सक्सेना ‘दूसरे,’ डॉ. महेन्द्र कुमार ठाकुर, रामेश्वर शर्मा, सुरेंद्र रावल, लतिका भावे, राजेन्द्र ओझा, गोपाल सोलंकी, डॉ. नौशाद अहमद सिद्धकी, राजमोहन, पल्लवी झा रूमा, माधुरी कर, सुषमा पटेल, राजेश जैन ‘राही’, अनिल श्रीवास्तव ‘जाहिद’, सुनील पांडे, छविलाल सोनी, इन्द्रदेव यदु, गणेव दत्त झा, नर्मदा प्रसाद विश्वकर्मा, मन्नू लाल यदु, बानीव्रत अधिकारी, वृंदा पंचभाई, साधना दुबे, देवकुमार वर्मा, भामा निर्मलकर, चेतन भारती, छबिलाल सोनी, हरीश कोटक, एन.के. सोहनी, रीना अधिकारी, गोपा शर्मा, फ़रीदा शाहीन, रेवाशीष अधिकारी, अमिताभ दीवान, रवीन्द्र सरकार, राखी विश्वकर्मा एवं मुकेश कुमार सोनकर के नाम प्रमुख हैं।

काव्य गोष्ठी में पढ़ी गई रचनाओं के कुछ प्रमुख अंश बानगी के तौर पर
• डॉ. चितरंजन कर –
मेघों ने गीत लिखे बूंदों ने गाया
झर झरझर झरनों ने मल्हार गुनगुनाया।
• गिरिश पंकज –
तप्त धरा से नेह लुटाने, दूर गगन से उतरे बादल
नाच रहा मन मोर सभी का, और विहसते सगरे बाल
• डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’-
केवल एक दरस की ख़ातिर तरस गया सावन
खुली हवा में देख कर तुझे बरस गया सावन
• अमर नाथ त्यागी –
मन उन रिमझिम बौछारों में ,
कितनी बार सिहर जाता है
अंजाने में ही जब कोई ,
नाम अधर पर आ जाता है
• रामेश्वर शर्मा –
पैरी बजावत हे, खरखरा के बादर, मांदर बजावत हे पुरवाई के संग मा, झूमत हे रूखराई
• के.पी. सक्सेना –
लगता बदरा पर पड़ी, अस बलमा की छाँव
गरजे मोरे आँगना, बरसे सौतन गाँव
• डॉ. महेन्द्र ठाकुर –
बादल बहुत दिनों से प्रतीक्षा कर रहा था तुम्हारी ,लेकिन तुम अब आये हो,अबकी बिना बरसे मत जाना,तुम्हें देख ऐसे लगता है ,जैसे पाँच बरस बाद आये हो।
• राजेश जैन ‘राही’ –
पहली बारिश प्रेम की , इतनी थी घनघोर
आज तलक भीगा हुआ ,मन का हर इक छोर
• सुनील पांडे –
सूरज का तेवर सूरजमुखी को खलने लगा है
आदमी यहाँ उसना चावल में बदलने लगा है
• अनिल श्रीवास्तव –
धानी चूनर ओढ़कर ,धरती यूँ शरमाय
नयी नवेली नार ज्यों ,पिया मिलन को जाय
• राजेन्द्र ओझा –
बरसात के बाद , यदि खड़े रहे पेड़ के नीचे ,तो भीगता है आदमी , पेड़ पर टिके पानी की एक और बरसात।
• गोपाल सोलंकी –
इधर बादल लगे बरसने, उधर आँसू लगे झरने
आया यादों का सैलाब, सबकुछ बहा ले गया।
• छवि लाल सोनी –
मेरी कल्पना के गाँव में, सीधी सरल हो हर गली
जहाँ सबको चैनों सुकूँ मिले, हर राही को लागे भली
• डॉ. नौशाद अहमद सिद्धकी –
आज की रात उनसे मुलाकात होने वाली है
दिल से दिल की बात होने वाली है
क्यों घटा घिर के आ गयी नौशाद
अब बरसात होने वाली है
• चेतन भारती –
अब्बड़ अमृत वर्षा बरसे, मंजूर बनके मोर मन नाचे
हाँसत हावे खेती खुशी मा…
• डॉ रवीन्द्र सरकार –
ज़िंदगी एक खेल है, और हम सब खिलाड़ी
उन्हें खेलना नहीं आता, जो हैं यहाँ अनाड़ी
मन्नू लाल यदु –
बिजली लपके लुहुर लुहुर
बादर गरजे गुरुर गुरुर…
• पल्लवी झा –
सावन में सखियां जब सजतीं
पिया मिलन की बातें करतीं
विरहन सी मैं तपती जाऊं
कैसे कजरी गीत सुनाऊं
• सुषमा पटेल –
पहली फुहार पड़ी, “सुषमा” सुहानी झड़ी,
याद आई मुलाक़ात, घड़ी अनमोल के।
अधर मुस्कान लिए, नैन युग्म झुके-झुके,
इंतजार में थी बैठी, छतरी को खोल के।
• रीना अधिकारी –
आग से, खाद से, पानी से, हवा से बना हुआ हूँ
क्या कहूँ किस तरह सना हुआ हूँ।
• लतिका भावे –
रिमझिम, रिमझिम रूप है बरखा रानी के
टिपटिप, टिपटिप, बोल है बरखा रानी के
• हरीश कोटक –
मेरी पाक मुहब्बत का, एक ही गवाह था वो चाँद
ये काले बादल उसे भी अगवा कर ले गये

कार्यक्रम के अंत में संयोजक डॉ. रवीन्द्र सरकार ने अतिथियों एवं रचनाकारों के प्रति आभार व्यक्त किया।

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