संकेत द्वारा बाल कविता पर संगोष्ठी एवं काव्य पाठ

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रायपुर, (सार्थक दुनिया न्यूज) । वृंदावन हॉल रायपुर में संकेत साहित्य समिति के तत्वावधान में डॉ. डॉ. रमेन्द्रनाथ मिश्र के मुख्य आतिथ्य, गिरीश पंकज की अध्यक्षता एवं संजीव ठाकुर, शकुंतला तरार एवं लतिका भावे के विशिष्ट आतिथ्य में बाल कविता पर संगोष्ठी एवं काव्य पाठ का आयोजन किया गया। इस अवसर पर अमरनाथ त्यागी, के.पी.सक्सेना दूसरे एवं गणेश दत्त झा विशेष रूप से उपस्थित रहे। माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण के पश्चात अतिथियों का स्वागत डॉ माणिक विश्वकर्मा नवरंग, राजेश जैन राही, पल्लवी झा, सुषमा पटेल एवं लालजी साहू ने किया।


कार्यक्रम के आरंभ में विषय की प्रस्तावना देते हुए संकेत साहित्य समिति के संस्थापक एवं प्रांतीय अध्यक्ष डॉ माणिक विश्वकर्मा नवरंग ने कहा कि बाल कविता वही सार्थक मानी जाती है जिसका सरोकार बच्चों की मानसिकता से होता है, जो मनोरंजक होने के साथ ही ज्ञानवर्धक भी होती हैं एवं जिसे समझने एवं पढ़ने में बच्चों को आसानी होती है। उन्होंने उदाहरण स्वरूप अपनी बाल कविता – हँसते हँसते रोती है, रोते रोते सोती है । दूध तभी पीती है जब, उसकी मर्जी होती है। कार्यक्रम अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार गिरीश पंकज ने अपने द्वारा सन 1973 में लिखी गई बाल रचना -नींद से जागो प्यारे बच्चों, सवेरा सुहाना मौसम लाया। खेलकूद के दिन बीते हैं, पढ़ने का मौसम आया का उल्लेख करते हुए बच्चों के मनोरंजन एवं मानसिक विकास में उद्देश्यपूर्ण बाल कविताओं के महत्व को विस्तार से रेखांकित किया।
मुख्य अतिथि लब्धप्रतिष्ठ इतिहासकार डॉ. रमेन्द्रनाथ मिश्र ने आज के परिवेश में बाल साहित्य अधिक से अधिक लिखने की महती आवश्यकता है कहते हुए बाल कविता लेखन को प्रोत्साहित करने के लिए उसपर केन्द्रित विमर्श एवं काव्य गोष्ठी के आयोजन के लिए समिति को साधुवाद दिया। डॉ. दीनदयाल साहू के कुशल संचालन में रायपुर एवं आसपास से आए पचास से अधिक जिन रचनाकारों ने अपनी कविताएँ प्रस्तुत कीं उनमें – गिरिश पंकज, डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग, संजीव ठाकुर, शकुंतला तरार, लतिका भावे, रामेश्वर शर्मा, डॉ. दीनदयाल साहू, लालजी साहू, हरीश कोटक, पल्लवी झा, सुषमा पटेल, पूर्वा श्रीवास्तव, रीना अधिकारी, अनिता झा , सुमन शर्मा, शुभा शुक्ला, नवीन कुमार सोहानी, छबीलाल सोनी, दिलीप वरवंडकर, राजेन्द्र ओझा, राजेश जैन, आर.डी.अहिरवार, इन्द्रदेव यदु, जे.के.डागर, शिव शंकर गुप्ता, गोपाल सोलंकी, चेतन भारती, अंबर शुक्ला अंबरीश, ऋषि कुमार साव, शरद झा, यशवंत यदु, सीमा पांडे, बलजीत कौर, आशा मानव, डॉ.अपराजिता शर्मा, देवाशीष अधिकारी, रूनाली चक्रवर्ती एवं विजया ठाकुर के नाम प्रमुख हैं।
पढ़ी गई रचनाओं के कुछ अंश बानगी के तौर पर

• गर्मी जी ओ गर्मी जी, क्यों इतनी बेशर्मी जी। पी लो थोड़ा ठंडा पानी, ले आओ कुछ नर्मी जी। गिरीश पंकज
• खेल रही है पानी से, छिपकर नाना नानी से।बोला करती है हँसकर, गुपचुप तितली रानी से।
डॉ माणिक विश्वकर्मा नवरंग
• बच्चे तो बच्चे ही होते, कभी हंसाते कभी रोते हैं।
दीन दुनिया की करें ना चिंता, कभी जगते कभी सोते हैं।      –  शिव शंकर गुप्ता
• मेरी प्यारी प्यारी मम्मा आई फ़ोन की बेचारी मारी मम्मा , पहले प्यार करती थी मुझको, अब मोबाइल की बन गई मम्मा         – शुभा शुक्ला निशा
• मैंने उसकी ओर चाबी का गुच्छा उछाला ,
बहुत देर से उदास वो खिलखिला उठा।
चाबी से ताला ही नहीं ,हंसी भी खुलती है।
– राजेंद्र ओझा
• आओ गोलू-मोलू भैया , नाच दिखाओ ता-ता थैया।
मार गुलाटी बंदर जैसे, बंदर उछले उछलो वैसे।
सुषमा पटेल
• हंसता है वो, सबको को हंसाता है, ट्रेन में करता है उछल कूद। कभी कमर मटकाता तो कभी सिर के टोपी पर डोर घुमाता है, प्यारी नटखट सी अदा उनकी, वह बाल कृष्ण नजर आता है – इन्द्रदेव यदु
• ये दादी ये नानी का गांव, उस पर ममता की छांव l
मेरे सपने हैं आंखों में उनकी, दौड़ मेरी पर दादी के पाव, धड़कन मेरी कलेजा उनका, जख्म मेरे यह दादी के पांव।                    – संजीव ठाकुर रायपुर
• कागज़ की कश्ती अब रहती उदास है। बच्चों के उमंग की बरखा रानी को प्यास है। खोई गलियों की रौनक आंगन गमगीन है। तितली स्वच्छंद विचरती। पर बच्चे पर्दानशीन है।                     – सीमा पाण्डेय “सीमा”
• बचपन पचपन लौट आया, चलो सुनाऊँ बचपन की कुछ खट्टी कुछ मीठी बातें, बचपन के थे खेल निराले
अनिता झा
• माँ बसे चरणों में तेरे, मेरे चारों धाम हैं, बेर शबरी के यहीं पर और मिलते राम हैं। है यशोदा की वो झिड़की, नेह में लिपटी हुई, गोद में तेरी विराजित मुस्कुराते श्याम हैं।  – राजेश जैन ‘राही’
• बहता नल कभी न छोडो, नलके की टोंटी ना तोड़ो
वर्षा का जल कर लो संचय, ना होगा सूखे का भय !!
पूर्वा श्रीवास्तव
• पूरी कायनात मेरी बाहों में सिमटती है
बिटिया मेरी जब मेरे गले से लिपटती है
हर शाम देखता हूँ उसका अंदाज-ए-शिकार
चॉकलेट की चाहत में मेरी ज़ेब पर झपटती है
आर डी अहिरवार
• बच्चों से घर आंगन शोभित। बच्चों से ही परिवार
बिन बच्चे जग सूना सूना। बच्चों से घर संसार
नन्हें मुन्ने बच्चे घर में। लगते सबको फरिश्ते हैं।
मात पिता दादा दादी नाना नानी प्रिय रिश्ते हैं।
छबीलाल सोनी
• लस्सी पीलो ठंडी भाई। ताजी मीठी खास बनाई।
फेंट दही फिर चीनी डाली। लगती बिल्कुल मथुरा वाली। डाला केसर पिस्ता काजू। आओ पीने गोलू राजू। शीतल लस्सी सबको भाती। आग उदर की खूब भगाती। – पल्लवी झा (रूमा)
• छोटे -छोटे उमर के हम हैं बच्चे, खेल -कूद में निकले हम अच्छे। गुरुजी को स्कूल में करो नमस्ते,
माता-पिता के हम होते हैं सच्चे। – ऋषि साव
• एक बस्ती में, एक चिड़िया थी गाने वाली, निर्धनों, बेसहारों के मीठे गीत सुनाने वाली।
रीना अधिकारी
• अक्षर-अक्षर गढ़ते जाना, ज्ञान का दीप जलाते जाना।
सूरज निकला हुआ सवेरा, चिड़ियों ने छोड़ा है डेरा, बच्चों तुम स्कूल को निकलो, व्यर्थ इधर से उधर न भटको, शाम ढले फिर घर को आना,  ज्ञान का दीप जलाते जाना। – शकुंतला तरार
• मुर्गे ने जब बाॅग लगाई। बिल्ली दौड़ी दौड़ी आई। मुर्गा उड़कर छत जा बैठा, बिल्ली बोली आ जा भाई   राजेंद्र रायपुरी
कार्यक्रम के अंत में हरीश कोटक ने आमंत्रित अतिथियों एवं रचनाकारों के प्रति आभार व्यक्त किया।

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