छठ पर्व विशेष: सम्पूर्ण सृष्टि का साधना पर्व है छठ

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“लोकपर्व छठ के गीतों के धुन से विभोर है सबका मन। वक्त के साथ भले ही बदल गए हों छठ मनाने के पारंपरिक तौर-तरीके पर बाजार व आधुनिकता के जोर के बाद भी भारतीय सांस्कृतिक परंपरा की समृद्धि के प्रतीक छठ की छटा लगातार फैल रही है।”

सार्थक दुनिया विशेष | अक्टूबर 29, 2022

सृष्टि की साधना का है यह पर्व। प्रकृति के समन्वय का उत्सव है जिसमें आधुनिकता और बाजार के दबाव से आहत-आक्रांत मन को शीतल कर देने की अद्भुत शक्ति है। इस महापर्व में जीवन के लिए जरूरी ऊर्जा को संयोजित करने का संदेश छिपा है और इसलिए आज देस-परदेस में भारतीयता की पहचान बन चुका है छठ पर्व। लोकगायिका चंदन तिवारी कहती हैं, इस महापर्व में लोक की शक्ति है, प्रकृति से समन्वय का संदेश है। छठ का व्रत एक महान तप है और तप की यही शक्ति हर मानस को जोड़ देती है।
 बहुत कठिन है व्रत की डगर
छठ को एक कठिन व्रत माना जाता है। लेखिका मंजूषा झा के अनुसार, किसी भी परिस्थिति में छठ से जुड़ी मान्यताओं से समझौता नहीं किया जाता है। यदि आपके मन में कोई निश्चय आ गया है तो आपको उसे पूरा करना होता है, पर कहते हैं कि डगर जरूर कठिन है, लेकिन उत्साह की शक्ति से यह आसान भी हो जाता है। मंजूषा कहती हैं, मैंने पहली बार 2012 में यह व्रत किया था। सोचा था कि बस एक बार करूंगी, लेकिन अब इतने वर्ष हो गए इसे करते हुए। आस्था की शक्ति कहूं या छठी मैया की कृपा, यह व्रत मुझे कभी कठिन नहीं लगा। इस दौरान उत्साह चरम पर रहता है और यह महापर्व कब शुरू होकर संपन्न हो जाता है, पता ही नहीं चलता। भूखे रहकर पकवान बनाना और अलग बर्तन, मिट्टी का चूल्हा इन सबका प्रयोग मन को अलग उमंग से भर देता है। गौरतलब है कि इस व्रत में पानी पीना भी वर्जित होता है। खरना के दिन भी खाने से पहले तक पानी नहीं पिया जाता है। खरना के बाद सुबह उठने से लेकर अगले दिन संध्या अर्घ्य व प्रात: अर्घ्य के बाद घर आकर पुन: पूजा पाठ करके पारण करना होता है।
आस्था के साथ स्वच्छता की शक्ति
देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छता अभियान को खूब बढ़ावा दिया है, पर छठ में यह पहले से ही मौजूद है। कोरोना ने हम सभी को स्वच्छता का पाठ पढ़ाया, पर यह हमारी संस्कृति का अटूट हिस्सा रहा है। छठ और स्वच्छता के बारे में मंजूषा कहती हैं, हम छठ पूजा के पकवान बनाते समय अनावश्यक बातचीत भी नहीं कर सकते हैं। कारण, सभी को यह ध्यान रखना होता है कि बातचीत के दौरान मुंह से निकलीं थूक की बूंदें तक उड़कर पूजा के सामानों पर न पड़ जाएं। इसी तरह बच्चों को खास हिदायतें देनी होती हैं कि वे पूजा घर से दूर रहें ताकि सभी सामान सुरक्षित रहे, जूठे न हो जाएं। मंजूषा उन दिनों को याद करती हैं जब स्वच्छता का नियम इतना कड़ा था कि गेहूं पीसने के लिए दुधमुंहे बच्चे को मांएं स्तनपान भी नहीं करा सकती थीं। इसी तरह गेहूं को सुखाते समय चिड़ियां न उसे चुगकर जूठा कर दें, इसके लिए घंटों घर के बड़ों को डंडा लेकर पहरेदारी करनी होती थी। चक्की को गंगाजल से धोकर ही उपयोग में लाया जाता था। पिछले पंद्रह साल से दिल्ली में रह रहीं सिवान (बिहार) की रीना का इस वर्ष दूसरा छठ पर्व है। वह कहती हैं, पहली बार व्रत किया तो बस एक ही डर था कि कुछ गलत न हो जाए। नियम से सारी चीजें करनी थीं। सबसे जरूरी ध्यान स्वच्छता का ही था। जब पहली बार अच्छी तरह संपन्न हो गया तो आत्मविश्वास आया कि अब मैं भी छठ पूजा कर सकती हूं।

 

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