विशेष : कोरबा जिले में 20 लाख अर्जुन पेड़ों की छंटाई से होगी 50 लाख कोसाफल की वृद्धि

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24 तसर केंद्रों में शाख कर्तन कार्य की हुई शुरुआत
चाइना व कोरिया के उत्पादित धागों का आयात बंद होने पर तेज़ी से बढ़ी मांग

विशेष फीचर :
कोरबा जिले में कोसा उत्पादन के क्षेत्र में आशातीत बढ़ोत्तरी के लिए रेशम विभाग ने जिले के 24 सरकारी तसर केंद्रों में लगे 20 लाख अर्जुन पेड़ों की छंटाई शुरू कर दिया है। इससे 1.50 करोड़ प्रतिवर्ष उत्पादित होने वाले कोसाफल में 50 लाख की आशातीत वृद्धि होने के साथ उसके 2 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है।
पिछले दो वर्षों के कोरोना काल में चाइना और कोरिया से मंगाई जाती रही रेशम धागों का आयात पूरी तरह से बंद हो गया है। इस कमी को पूरा करने के लिए ही जिले में राज्य की पहली वेट रिलिंग मशीन लगाई गई है। इस मशीन के लग जाने के बाद से कोसा की मांग बढ़ गई है। अर्जुन पेड़ों की छंटाई से जहां अधिक मात्रा में कोसा का उत्पादन होगा वहीं धागा निकालने में भी सहूलियत होगी।
 बुनकरों को कोसा आपूर्ति के लिए ज़िले में 46 तसर केंद्रों का संचालन किया जा रहा है। इनमें 24 विभागीय और 22 ग़ैर विभागीय हैं। इन केंद्रों में प्रतिवर्ष 1.50 करोड़ कोसा फल का उत्पादन होता है। ज़रूरत के मुताबिक कम धागा की उपलब्धता होने के कारण यहां के बुनकर चायना और कोरिया से आयातित होने वाले धागों पर ही निर्भर थे। वे विदेशी धागे को बुनकर इसका उपयोग ताना बनाने के लिए करते थे।
 समूचे प्रदेश एवं कोरबा जिले में पिछले दो वर्षों से फैले कोरोना संक्रमण के कारण धागों का आयात भी पूरी तरह से बंद है। इस कमी को पूरा करने के लिए ही जिला रेशम विभाग ने कलेक्ट्रेट के समीप कोसाबाड़ी स्थित वृहद विभागीय प्रक्षेत्र में वेट रीलिंग मशीन की स्थापना की है। इससे धागा निकालने का काम बदस्तूर जारी है। महिलाओं को धागा निकालने के लिए पूरी तरह से प्रशिक्षित करने के साथ बुनकरों को भी ताना उपलब्ध कराया जा रहा है। गौरतलब है कि इससे पहले महिलाएं अपने हाथ से धागा निकालने का काम करती थीं। वेट रीलिंग मशीन के अलावा बुनियाद मशीन से धागा निकलने से धागा तैयार करने की प्रक्रिया में काफ़ी तेज़ी आई है। मशीन का उपयोग होने से कोसा फल की खपत भी बढ़ गई है। यही वजह है कि कोसा उत्पादन को बढ़ाने के लिए रेशम विभाग ने शाख कर्तन का काम बड़े पैमाने पर शुरू कर दिया है। इसके लिए छत्तीसगढ़ शासन ने जिला कोसा विभाग को 30 लाख रुपए का आवंटन किया है। इस मामले में दक्ष रखने वाले जानकारों के अनुसार कोसा फल का उत्पादन बढ़ने से इस कारोबार में समृद्धि आएगी।


56
महिला समूह कर रहीं हैं धागाकरण का काम


रेशम विभाग द्वारा न केवल कोसा का उत्पादन किया जा रहा है बल्कि धागाकरण के कार्यों से भी लोगों को जोड़ा जा रहा है। जानकारी के अनुसार वर्तमान में कुल 56 महिला समूहों को धागा निकालने के लिए प्रशिक्षित किया गया है। इसके लिए उन्हें शासन द्वारा टसर धागाकरण योजना के तहत
निःशुल्क धागाकरण मशीन भी प्रदान किया गया है। इसके साथ ही हितग्राहियों को पौधरोपण और नई कृमिपालन तकनीक सिखाई जा रही है जिसके चलते कोसाफल का उत्पादन भी बढ़ रहा है। टसर कृमिपालन योजना प्रारंभ होने से महिलाओं और किसानों को गांव में ही आय का एक अच्छा स्त्रोत मिल गया है।अब इन महिलाओं को रोजगार के लिए बाहर के भरोसे नहीं रहना पड़ता है।

गठानों में कार्यरत महिलाओं को भी धागाकरण के कार्य से जोड़ा गया है। महिलाओं को सरकारी दर पर कोसा प्रदान किया जा रहा है। धागा निकालने के काम में तेजी आने से बुनकरों को भी आसानी से बड़े पैमाने पर धागा उपलब्ध हो रहा है।
एक साल में होती है कोसे की तीन फ़सल 

कोसाफल का उत्पादन साजा और अर्जुन पौधों के माध्यम से बखूबी किया जाता है। इस हिसाब से कोसे की फ़सल साल में तीन बार तैयार होती है। पहली फ़सल का उत्पादन जून माह में बरसात लगने पर शुरू हो जाता है। इस समय पेड़ पर अधिक पत्तों की मौजूदगी के कारण फ़सल का उत्पादन अधिक मात्रा में होता है। जानकारों के मुताबिक प्रत्येक चक्र के फ़सल को तैयार होने में तक़रीबन तीन माह का समय लगता है। इसी तरह दूसरे फ़सल की शुरुआत अगस्त एवं सितंबर महीने में और तीसरी फ़सल को अक्टूबर माह में लगाना शुरू कर दिया जाता है। तीसरे चक्र की फ़सल को तैयार करने के लिए 25 नवंबर से 10 दिसंबर तक की अवधि में रेशम कीट छोड़ने की व्यवस्था की जाती है। यह फ़सल जनवरी माह में तैयार हो सामने आ जाता है। हालिया स्थिति में तीसरे और अंतिम चक्र की फ़सल तोड़ी जा चुकीं है।

कोसाफल को कोकून बैंक कटघोरा द्वारा कोसा सहकारी समिति के माध्यम से खरीदा जाता है। धागा करण समूहों द्वारा कोसा धागा निकालकर रीलर्स-बुनकरों को बेचा जाता है। जिसके बाद बुनकर रेशम से कपड़ा बनाते हैं।
 महिला समूहों को दिया गया काम 

शाख कर्तन का काम पहली बार महिला समूहों को दिया गया है। फ़सल उत्पादन के बाद हर पांच साल में पेड़ों की छंटाई करना आवश्यक होता है। पांच साल से अधिक समय गुजर जाने के बाद भी छंटाई नहीं हुई थी। विभागीय अधिकारी एसडी शर्मा की मानें तो नई शाखाएं आने में तीन माह का समय संभावित है। वसंत ऋतु के दौरान अर्जुना पेड़ में कोंपले तेजी से आती हैं। यही वजह है कि जनवरी माह से ही छंटाई का काम शुरू हो गया है। जून माह तक सभी पेड़ों में शाख आ जायेंगी। नई शाखाएं निकलने के बाद पेड़ों में कोसा तैयार करने के लिए रेशम कीट छोड़ने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
 सरकार की योजना से महिलाओं के स्वावलंबन की राह हुई मजबूत 
 कोसे के महीन धागे जीवन को मजबूत आधार भी दे सकते हैं। यह प्रदेश के वनांचल क्षेत्र कोरबा में अच्छी तरह से फलीभूत भी हो रहा है। यहां की 24 स्वावलंबन समूह की महिलाएं टसर योजना से और 9 स्वावलंबन समूह की महिलाएं मलवरी योजना से जुड़कर कोसा उत्पादन कर रही हैं। इन समूहों की कुल दो हजार से ज्यादा ग्रामीण महिलाएं कोसा कृमिपालन का काम कर रही हैं। कोसा कृमि द्वारा बनाए गए ककून को बेचकर महिलाओं को सालाना 50 से 70 हजार तक की आमदनी हो रही है। साथ ही कोसा धागा निकालकर बेचने से कई महिलाओं को अतिरिक्त लाभ भी हो रहा है। सरकार की इस योजना से महिलाओं के स्वावलंबन की न सिर्फ राह मजबूत हुई है, बल्कि उनके परिवार की जरूरत भी पूरी हो रही है। खान-पान, रहने से लेकर बच्चों की शिक्षा जैसी कई जरूरतें अब ये महिलाएं पूरी कर पा रही हैं।

कोसा फल में होगी वृद्धि: शर्मा
कथन
कोसा फल के उत्पादन को बढ़ाने के लिए पुराने अर्जुन पेड़ों की छंटाई का काम किया जा रहा है। पेड़ों की छंटाई से लगभग 50 लाख कोसा फल की बढ़ोत्तरी होगी। इससे क्षेत्र में रोजगार के जहां अवसर बढ़ेंगे वहीं बुनकरों को उनकी मांग के अनुरूप धागा भी उपलब्ध होगा।एस.डी. शर्मा
उप संचालक: रेशम विभाग, कोरबा

 

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