विशेष: युवाओं को तथागत बुद्ध के जीवन के बारे में क्यों पढ़ना चाहिए : रतनलाल डांगी

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विचार विशेष | सार्थक दुनिया, रायपुर


हम देखते हैं कि आज हमारे युवा जो विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं या कोई स्टार्टअप शुरू कर रहे हैं उन्हें याद रखना चाहिए कि पहली बार में कुछ ही लोग सफल होते हैं, जबकि ज्यादातर लोगों को काफी संघर्ष के बाद सफलता मिलती है। कईयों को तो वो भी नहीं मिलती है। इससे वो निराश, हताश एवं उदास हो जाते हैं एवं तैयारी करना तक छोड़ देते हैं। वे जल्दी ही हथियार डाल देते हैं और मैदान से बाहर चले जाते है। वे खुद को सांत्वना देने के लिए कहते रहते हैं कि उनको बहुत मुसीबतों का सामना करना पड़ता है।
अपनी असफलता के जिम्मेदार कई कारणों (भौतिक सुविधाओं के अलावा पर्याप्त गाइडेंस की कमी इत्यादि) को बताकर अपने को आत्मसंतुष्ट कर लेते हैं। अपनी असफलता की जिम्मेदारी स्वयं नहीं लेते हैं। इस कारण से अपने लक्ष्य को हासिल करने का विचार ही त्याग देते हैं। मेरा मानना है कि ऐसे युवाओं को एक बार भगवान बुद्ध के जीवन के संघर्ष के बारे में जरूर पढ़ना चाहिए एवं इस बात पर विचार करना चाहिए कि क्या आपका संघर्ष बुद्ध के संघर्ष से भी बड़ा है ?
यह सब बातें क्या हमें यह सोचने को मजबूर नहीं करता कि एक राजकुमार (सिद्धार्थ) जिसके पास जीवन जीने की हर सुविधा है, नौकर चाकर है, इच्छा प्रकट करते ही हर चीज उपलब्ध हो जाती है। सुंदर जीवन साथी है, प्यारा सा बेटा है, सब भौतिक सुविधाएं एवं संसाधन उपलब्ध है। हर ऋतु के हिसाब से सुंदर महल है। अपने पिताश्री जो स्वयं राजा है की वह इकलौती संतान हैं तथा यह भी निश्चित है कि भविष्य में उसे ही राजगद्दी मिलनी है।
उस राजकुमार के पास विलासिता के सभी साधन उपलब्ध हैं। वैसे साधन पाने का सपना हर व्यक्ति का होता है। इतना सब कुछ होने के बावजूद भी वो ‘मानव जाति के दुखों के निवारण का मार्ग’ सामने रख, उसे त्याग देते हैं एवं जंगलों की तरफ प्रस्थान कर जाते हैं। यह सब वो अपनी मर्जी से करते हैं। न तो यह उसे अपने माता-पिता द्वारा किसी को दिए गए वचन को निभाने के लिए उनकी आज्ञा से करना पड़ता है और न ही किसी दुश्मन के संभावित हमले से अपने आपको बचाने के लिए। न ही अन्य किसी प्रकार के दबाव में, बल्कि वो समस्त मानव समाज की पीड़ा को दूर करने के लिए कोई मार्ग ढूंढना चाहता है। उसे उसका अपना कोई व्यक्तिगत हित इसमें नहीं दिखाई पड़ता है। जब वो दुखी लोगों को देखता है तो अंदर से दुखी हो जाता है और उनकी करुणा जग उठती है।
यह कहानी सुनने एवं पढ़ने में जरूर अच्छी लगती है कि वो रात्रि में अपने महल को त्याग कर चले गए, लेकिन कल्पना करने मात्र से ही हम अंदर से सिहर उठते हैं कि घर, पत्नी, बेटा, परिवार, रिश्तेदारों और सुख- सुविधाओं को छोड़ते हुए उनके मन में क्या गुजरी होगी..? यह कल्पना करके कि यहां से जाने के बाद कहां जाना है, कितना जंगल होगा, जंगली जानवरों शेर, चीता, भालू, भेड़िया, जंगली कुत्ते और सांप, बिच्छू के ख़तरों के बारे में सोचकर ही सामान्य व्यक्ति अपना इरादा बदल देता है। जिसके पास सर्दी, बारिश, गर्मी के अनुसार महल था, उसमें से निकलने के बाद इन ऋतुओं में वे कैसे रहे होंगे? तपती रेत में पावों में छाले हो गए होंगे?
कड़ाके की सर्दी में ठिठुर गए होंगे। बारिश में कैसे नदी नालों को पार करते होंगे। महल में स्वादिष्ट भोजन करने वाले को भिक्षाटन करना पड़ता होगा। कितने घर मालिकों ने उनको भला बुरा कहा होगा, अपमान किया होगा और यह सब उन्होंने एक-दो दिन के लिए नहीं सहा था बल्कि पूरे छह साल तक जब तक उनको ज्ञान नहीं मिल गया था। ऐसा भी नहीं है कि उसके बाद भी उनकी मुश्किलें कम हो गई हों।
हम पढ़ते हैं, सुनते हैं कि उनका जीवन हमेशा चुनौतियों से ही भरा हुआ था। दूसरी विचारधारा के लोग उनका अपमान करने का कोई भी मौका नहीं चूकते थे। सामान्य लोग भी उनका अपमान करते ही रहते थे। अपने सौतेले भाई देवदत्त ने भी उनके अपमान का कोई मौका नहीं छोड़ा था। यहां तक कि वह उनकी हत्या करने के लिए भी षड्यंत्र रचा करता था। मगध के राजा अजातशत्रु को भी उनके खिलाफ भड़काकर उनकी हत्या करवाना चाहता था। इतनी चुनौतियों का सामना करते हुए भी बुद्ध अपने मार्ग से विचलित नहीं हुए थे।
आज हमारे युवा थोड़ी सी मुश्किलें सामने आते ही हिम्मत हार जाते हैं। अपने पास संसाधनों की कमी का रोना शुरू कर देते हैं। कोई अपनी आर्थिक स्थिति का, तो कोई अन्य कारणों का हवाला देकर स्वयं को अपना लक्ष्य छोड़ देने को जायज ठहरा देते हैं, जबकि उनको अपने लक्ष्य को त्यागने से पहले भगवान बुद्ध के संघर्षों को जरूर पढ़ना चाहिए और अपने आप से यह पूछना चाहिए कि मेरी चुनौतियां क्या उनसे भी ज्यादा हैं ? निश्चित रूप से नहीं, ऐसा ही जवाब आएगा।
युवाओं को बुद्ध का यह उपदेश हमेशा याद रखना चाहिए कि मेहनत के बिना कुछ हासिल नहीं होता। आलसीपन और कामचोरी से जीवन बर्बाद हो जाता है। सुखी और खुशहाल जीवन जीने का एक मात्र तरीका है मेहनत…, इसलिए जीवन में सफल बनने या कुछ हासिल करने के लिए मेहनत जरूरी है। गौतम बुद्ध ने कहा है, ‘मेहनत करो क्योंकि मेहनत के बिना कुछ हासिल नहीं होता है।’
बुद्ध कहते हैं कि व्यक्ति को हमेशा अच्छी संगत में रहना चाहिए। कहा जाता है कि जैसी आपकी संगत होगी आप भी वैसे ही बन जाएंगे, इसलिए युवाओं को अच्छी संगत में ही रहना चाहिए। ऐसे लोगों के साथ ही रहें, जिनके लक्ष्य आपके लक्ष्य के समान हो। नकारात्मक विचारों वाले लोगों से हमेशा दूर ही रहे। महात्मा बुद्ध के मुताबिक क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु होता है, क्योंकि जिस इंसान को अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं होता, वह कई बार ऐसे फैसले ले लेता है, जिसका सबसे ज्यादा नुकसान उसको ही होता है।
क्रोध में कई बार युवा अपनी जीवन लीला भी समाप्त कर लेते हैं, इसलिए मनुष्य को अपने क्रोध पर काबू करना चाहिए। बुद्ध ने कहा है, ‘जैसा हम सोचते हैं ठीक वैसा ही हम बन जाते हैं, इसलिए जब मन शुद्ध होता है, तब प्रसन्नता परछाई की तरह हमारा पीछा करती है।’ इसीलिए हमेशा सकारात्मक बनें और सकारात्मक सोचें, चाहे परिस्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो। आपके खुश रहने और पॉजिटिव सोचने से आपके जीवन में खुशियां बनी रहेंगी। व्यक्ति के सोच से जीवन बदल सकता है और बिगड़ भी सकता है, इसलिए हमें हमेशा अपने लक्ष्य के बारे में सकारात्मक सोच रखना चाहिए।
विश्व में कुछ ऐसे महापुरुष रहे हैं, जिन्होंने अपने जीवन से समस्त मानव जाति को एक नई राह दिखाई है। उन्हीं में से एक महान विभूति गौतम बुद्ध थे, जिन्हें महात्मा बुद्ध के नाम से जाना जाता है। दुनिया को अपने विचारों से नया मार्ग (मध्यम मार्ग) दिखाने वाले महात्मा बुद्ध भारत के एक महान दार्शनिक, समाज सुधारक और बौद्ध धर्म के संस्थापक थे। सत्य और अहिंसा को अपने जीवन का आधार मनाने वाले और बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध ने लोगों को सच्चाई के मार्ग पर चलने की शिक्षा दी और जीवों पर दया करने के लिए कहा। उन्होंने पशु बलि की जमकर निंदा की।

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