आयोजन : श्री रामकथा | कोरबा, सार्थक दुनिया/ 25 दिसंबर 2022
शहर के मध्य स्थित पीली कोठी में गोयल परिवार पताडी- तिलकेजा वाले द्वारा श्री रामकथा का आयोजन कराया जा रहा है। कथा के दूसरे दिन वृंदावन से पधारे कथा व्यास श्रीअतुल कृष्ण भारद्वाज द्वारा भगवान शिव एवं माता पार्वती के विवाह का सुंदर वर्णन किया गया। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रोता गण उपस्थित थे।
कथा व्यास श्री ‘महाराज’ जी, राम कथा के दूसरे दिन स्वर्ग एवं नरक की सुंदर व्याख्या करते हुये कहते हैं कि मनुष्य जब अपनी अज्ञानतावश भौतिक सुख हेतु दुराचार पापाचार, व्यभिचार, भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाता है, उसे
नरकीय जीवन यापन करना पड़ता है। वह परमात्मा तक नहीं पहुँच पाता है एवं बार-बार जीवन मरण
की लीला में भटकता रहता है। व्यास जी कहते हैं कि इस कलियुग में श्रीमद्भागवत एवं श्रीरामचरित मानस रूपी गंगा ही प्राणी को इस भवसागर से पार कराकर आत्मा का परमात्मा से मिलन करा सकती है। इस कलियुग में केवल राम-नाम एवं सत्संग ही मोक्षाधार है।
‘गृहस्थ जीवन’ कैसा होना चाहिए..? यह सब भगवान शिव से सीखने को मिलता है। “कौन सी बात पत्नी को बताना चाहिये और कौन सी नहीं “- यह भी भगवान शिव बताते हैं ।
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व्यास जी ने आगे कहा कि पिता के घर, मित्र के घर, स्वामी के घर व गुरू के घर बिना बुलाये जाना चाहिये लेकिन जब यहां कोई समारोह हो तो बिना
बुलाये नहीं जाना चाहिये। ऐसी स्थिति में अपमानित होने के अलावा कुछ भी नहीं मिलता। पत्नी यदि
किसी विषय पर हठ करें तो उसे कैसे मनाना चाहिये- यह भी भगवान शिव से सीखना चाहिये। यदि पत्नी न मानें तो उसे भगवान भरोसे छोड़ देना चाहिये। गृहस्थ जीवन में तनाव खड़ा करने से कुछ लाभ नहीं होना है। हमें समस्या का समाधान खोजना चाहिये। आज परिवार में माता-पिता, पति-पत्नी, पुत्र-पुत्री, भाई-बहन ही जब बातें नहीं मानते तो समाज का भरोसा कैसे किया जाए। समस्या चाहे कितनी बड़ी ही क्यों न हो, मन और बुद्धि को शांत रखते हुये उस पर विचार करने से उसका निराकरण हो जाता है।
श्री व्यास ने कहा कि मनुष्य आज औसत 70 वर्ष की आयु जी रहा है। यदि इससे अधिक आयु है तो समझिये उसे बोनस प्राप्त है। मनुष्य के जीवन में चार पड़ाव आते हैं, उसका पूर्ण सदुपयोग करना चाहिये। अंतिम समय में जो सन्यास आश्रम की बात पुराणों में कही गयी है, उसका भी उसे पालन करना चाहिये, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि वह घर-परिवार को छोड़कर चला
जाए, बल्कि घर को ही बैकुण्ठ बनायें। हनुमान जी की तरह भगवान के नाम का सुमिरन और कीर्तन
करते रहें।
उन्होंने कहा कि शरीर का सम्बंध स्थाई नहीं होता। स्थाई सम्बंध आत्मा का परमात्मा से होता है, इसलिये मनुष्य को अपनी सोच का दायरा बढाना चाहिये, उसे संकुचित नहीं करना चाहिये। मनुष्य को “सियाराम में सब जग जानी” के सिद्धांत पर जीना चाहिये। सभी में परमात्मा का दर्शन करना चाहिये।