सार्थक दुनिया न्यूज़, गरियाबंद | 03 अप्रैल 2022
गरियाबंद/रायपुर | छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में किडनी की बीमारी से सुपेबेड़ा के एक और बाशिंदे की मौत हो गई है। लंबे समय से अपना इलाज करा रहे 47 साल के पुरंदर आडिल ने बीती रात दो बजे के करीब अंतिम सांस ली। एक दशक के दौरान इस गांव में किडनी की इस रहस्यमय बीमारी से यह 78वीं मौत बताई जा रही है।
गांव के त्रिलोचन सोनवानी ने बताया कि गांव के पुरंदर आडिल पिछले कई सालों से किडनी और लीवर की बीमारी से जूझ रहे थे। उनका इलाज विशाखापट्टनम, गरियाबंद, रायपुर मेडिकल कॉलेज और रायपुर एम्स में हुआ था। बाद में तबीयत खराब हुई तो उन्हें रायपुर मेडिकल कॉलेज के डॉ. भीमराव आम्बेडकर अस्पताल में भर्ती कराया गया। चार दिन पहले अस्पताल ने भी एम्स ले जाने की सलाह देकर उन्हें डिस्चार्ज कर दिया। परिजन उन्हें घर लाना चाहते थे। वहां से सरकारी एम्बुलेंस भी नही मिला। मजबूरी में एक निजी एम्बुलेंस से उन्हें घर लाना पड़ा। उसके लिए भी 6 हजार रुपए खर्च हो गए। शनिवार रात उनकी मौत हो गई। बीमारी की वजह से उनकी खेती प्रभावित हुई थी वहीं इलाज पर हुए खर्च से भी उनकी आर्थिक स्थिति काफी बिगड़ गई थी।
10 दिन पहले बीमार चाचा की मौत हुई थी
त्रिलोचन ने बताया कि पुरंदर के निधन से 10 दिन पहले उनके चाचा गंगाराम (70) का निधन हुआ था। वह भी किडनी की बीमारी से परेशान थे। डॉक्टरों ने उन्हें डायलिसिस की सलाह दी थी, लेकिन उन्होंने नहीं कराया। शनिवार को उनका दशगात्र था। पुरंदर ने भी उसमें भोजन किया। आधी रात के बाद उनका भी निधन हो गया।
गांव में अभी 30 और लोगों का इलाज जारी
ग्रामीणों के मुताबिक करीब 2 हजार की आबादी वाले सुपेबेड़ा गांव में अभी भी 30 लोग किडनी की गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं। उनमें से दो लोगों की हालत बेहद गंभीर है। कई बच्चों में भी बीमारी के लक्षण दिखने लगे हैं। इस साल की शुरुआती तीन महीनों में ही कई मरीजों की मौत हुई है। ग्रामीणों ने इसे सामाजिक वजहाें से तूल नहीं दिया। ग्रामीणों को लगता है कि इस बीमारी की बात बाहर फैली तो कोई उनके यहां बेटे-बेटी का रिश्ता नहीं करेगा।
सरकारी वादे, वादे ही रह गए
सुपेबेड़ा गांव में किडनी की बीमारी से ग्रामीणों की ऐसी मौत का मामला 10 साल पहले ही सामने आ गया था। तबसे ग्रामीण उसका रिकॉर्ड रख रहे हैं। उनके मुताबिक अब तक 105 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। सरकार यह संख्या 78 बताती है। शुरुआती उपेक्षा के बाद सरकार जागी तो बीमारी की वजह तलाशने की कोशिश शुरू हुई।
बताया गया, सुपेबेड़ा और आसपास के गांवों के पेयजल में भारी धातुएं हैं। उसकी वजह से किडनी खराब हो रही है। सरकार ने गांव में एक ऑर्सेनिक रिमूवल प्लांट लगा दिया। वह भी काम का नहीं निकला। 2019 में राज्यपाल अनुसूईया उइके और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव खुद गांव पहुंचे। हर तरह के सहयोग का वादा किया। तेल नदी से पेयजल की योजना बनी लेकिन यह वादा अब तक अधूरा है। गांव का अस्पताल अब भी अधूरा है।