क्या लखीमपुर खीरी हिंसा बिगाड़ सकती है राजनीतिक दलों का समीकरण? जानिए किसका है क्षेत्र में दबदबा

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राजनीति विशेष |


नई दिल्ली (सार्थक दुनिया न्यूज़) | उत्तर प्रदेश का लखीमपुर खीरी इन दिनों राजनीतिक घमासान का केंद्र बना हुआ है। रविवार को किसान आंदोलन के दौरान हुई हिंसा में चार किसानों समेत कुल आठ लोगों की मौत को लेकर राजनीति गरमा गई है।
इसमें केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र और उनके बेटे आशीष मिश्र का नाम आ रहा है। विपक्षी पार्टियों ने आशीष मिश्र पर किसानों पर गाड़ी चढ़ाने का आरोप लगाया है। कांग्रेस, सपा, बसपा, आरजेडी, तृणमूल कांग्रेस समेत लगभग सभी विपक्षी दलों ने इस घटना को लेकर सरकार की घेराबंदी शुरू कर दी है। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले विपक्ष के हाथ बड़ा मुद्दा लग गया है। विपक्ष भाजपा के खिलाफ माहौल बनाने में जुट गया है।

लखीमपुर खीरी का राजनीतिक समीकरण
सूबे में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले हुई हिंसा ने भाजपा की चिंताओं को बढ़ा दिया है। लखीमपुर खीरी मे विधानसभा की आठ सीटे हैं और इस सभी पर भारतीय जनता पार्टी का दबदबा रहा है। भाजपा ने 2017 के चुनावों में इस सभी आठ सीटों पर अपना कब्जा जमा लिया था। जिस इलाके में यह हिंसा हुई है वह निघासन विधानसभा सीट के अन्तर्गत आता है। 2017 में निघासन सीट पर भाजपा के पटेल रामकुमार वर्मा ने जीत दर्ज की थी। उन्होंने समाजवादी पार्टी के कृष्णा गोपाल पटेल को 46123 वोटों से हराया था।

बिगड़ सकता है भाजपा का खेल
भाजपा को डर है कि लखीमपुर में हुई हिंसा का असर पीलीभीत, शाहजहांपुर, बरेली, लखीमपुर सहित पूरे तराई के इलाके में देखने को न मिले। इनके तहत आने वाली वाली कई सीटों पर बड़ी तादाद में सिख और कुर्मी मतदाता हैं। 2014 और 2019 में खीरी लोकसभा सीट से अजय मिश्रा टेनी जीत दर्ज कर रहे हैं। लखीमपुर खीरी और उसके आसपास के 7 जिलों में विधानसभा की कुल 50 सीटें हैं। फिलहाल इनमें से 45 पर भाजपा का कब्जा है। इसमें से समाजवादी पार्टी के पास 4 सीट और एक पर बीएसपी का कब्जा है।

सत्ता से बाहर है कांग्रेस
पिछले तीन दशकों से सत्ता से बाहर चल रही कांग्रेस के लिए लखीमपुर खीरी की घटना राजनीतिक फायदा पहुंचा सकती है। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को अपनी सियासी जमीन तैयार करने का एक बड़ा मौका हाथ लग गया है। इस घटना को लेकर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी समेत कांग्रेस के नेता लगातार केंद्र और राज्य सरकार पर हमलावर हैं।

 

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