चर्चा: कांग्रेस को मिला ग़ैर गांधी अध्यक्ष

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सार्थक दुनिया न्यूज़ डेस्क |

आख़िर चौबीस साल बाद ही सही, कांग्रेस को ग़ैर गांधी अध्यक्ष मिल गए। आधिकारिक रूप से ही सही, अब कांग्रेस आलाकमान का मतलब सोनिया गांधी या राहुल गांधी नहीं बल्कि मल्लिकार्जुन खड़गे हुआ करेगा। खड़गे निश्चित तौर पर अनुभवी, परिपक्व और सुलझे हुए नेता हैं। किसी अध्यादेश को खुल्लमखुल्ला फाड़कर मज़ाक़ बनाने की नादानी की अपेक्षा उनसे नहीं की जा सकती। 
वे ऐसा करेंगे भी नहीं। वैसे खड़गे के पास कर दिखाने की बहुत कुछ गुंजाइश है। इसलिए नहीं कि वे ग़ैर गांधी हैं, बल्कि इसलिए कि जहां आज कांग्रेस खड़ी है वहाँ से उसके नीचे जाने की तो गुंजाइश है नहीं। जो कुछ अच्छा होगा, जो कि होगा ही, वह सब खड़गे के खाते में ही जाएगा। कम से कम अब ऐसा तो नहीं होगा कि पराजय का ठीकरा खड़गे के सिर फोड़ा जाए और विजय की पताका गांधी परिवार के हिस्से में चली जाए।
अच्छा-बुरा जो कुछ भी होगा, अब खड़गे के कारण ही होगा। यश भी उनका और अपयश भी उन्हीं का। निश्चित ही, यह सब खड़गे ने पहले ही सोच लिया होगा और उनकी दिव्य जीत भी बता रही है कि वे पार्टी के एक तरह से अब सर्वमान्य नेता हैं। उन्हें अब ऐसे काम करने होंगे कि सर्वमान्य ही बने भी रहें।

कम से कम वे सीताराम केसरी जैसी नादानी तो नहीं ही करेंगे। केसरी ने एक बार कह दिया था- कि हाँ, मैं चमचा हूँ। … चमचा हूँ, इसीलिए सत्ता में हूँ। इस तरह की बयानबाज़ी न तो खड़गे के स्वभाव में है और न ही वे करेंगे। अगला चुनाव हिमाचल प्रदेश में है और उनकी पहली कामयाबी या नाकामयाबी यहीं से शुरू हो जाएगी।

पहले से सीटें बढ़ा पाते हैं या सत्ता दिला पाते हैं, यह उनकी नेतृत्व क्षमता पर निर्भर होगा। शशि थरूर को मिले नाम मात्र के वोट बताते हैं कि उत्तर भारत में कांग्रेसी लोग उन्हें पसंद नहीं करते। लेकिन यह बात वे पहले से ही जानते थे। वे कह भी चुके हैं कि मैं तो इसलिए चुनाव लड़ रहा हूँ ताकि इतिहास को याद रहे कि वर्तमान कभी ख़ामोश नहीं रहा। पूरे दम ख़म से डटा था अपने कर्तव्य पथ पर।

कुल मिलाकर, पार्टी अध्यक्ष के चुनाव अब संपन्न हो चुके हैं। उम्मीद की जा रही है कि कांग्रेस अब इससे ध्यान हटाकर हिमाचल प्रदेश और गुजरात के आने वाले चुनावों में पूरा ज़ोर लगाएगी। हालाँकि, इस पार्टी को फ़िलहाल राजस्थान में फैले पड़े रायते को भी समेटना है। यह कैसे समेटा जाता है, खड़गे का चातुर्य इस पर भी परखा जाएगा। जिस तरह अशोक गहलोत एग्रेसिव दिख रहे हैं, और खड़गे के करीबी भी खुद को जता रहे हैं, उस हिसाब से तो पलड़ा उन्हीं का भारी लग रहा है।

 

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